छत्तीसगढ़िया किसान

( Chhattisgarhia kisan )

 

छत्तीसगढ़िया बेटा हरव मे छत्तीसगढ़ मोर महतारी,
धरती दाई के सेवा करथव किसानी मोर रोजगारी।

धन्हा खेत अऊ अरई तुतारी मोर हावय चिन्हारी,
नागर बईला अऊ खेत खार मोर हावय संगवारी।

माटी ले सोना उपजाथव भईया मे हा खेतिहर किसान,
मे गहूं उपजाथव तब सबला मिलते रोटी बर पिसान।

मोर उपजाए धान के चाउर ले भात सबो झन खाथव,
छत्तीसगढ के माटी ले उपजे मे माटीपुत्र कहलाथव।

नई जानव कोनो किसम के लेन देन नई आवय सौदेबाजी,
सुग्घर सादा जीवन जीथव खाके चटनी बासी अऊ भाजी।

साफ मन अऊ मीठा बानी मोर हावय पहिचान,
दगाबाजी लूटखसोट ले दूर मे आवव गरीबहा किसान।

मेहनत भरसक करथव मेहा कभू जी नई चोरावव,
हाड़ तोड़ मेहनत ले अपन घर परिवार ला मेहा चलाथव।

बड़े सपना नई हे मोला इही माटी मा जिनगी बिताना हे,
धरती दाई के सेवा करत एक दिन ओहि मा समाना हे।।

 

रचनाकार  –मुकेश कुमार सोनकर “सोनकर जी”
रायपुर, ( छत्तीसगढ़ )

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