देख चुका हूँ

( Dekh chuka hoon )

 

ख्वाबों से हकीकत का सफर देख चुका हूँ I
अब वक़्त का बेवक़्त कहर देख चुका हूँ II

सब आब की किस्मत में कहाँ होता समंदर I
दम तोड़ती दरिया ,वो नहर देख चुका हूँII

आब-ए-हयात दौर में विष का ये समंदर I
अँधा वकील-ए-गूंग नगर देख चुका हूँ II

बदले हुए हालात में जज्बात बेवफा I
दिल चाक किए लख़्त-ए-जिगर देख चुका हूँ II

खुशबू है नदारत, गुलों के रंग भी फीके I
बेघर हुआ मायूस भ्रमर देख चुका हूँ II

करते थे जो पड़ताल लियाक़त की हमारी
शिकस्तनी उनकी भी मगर देख चुका हूँ II

तुर्फ़ा हुए अवतार जमाने के आजकल
पॉकीज़ हथेली पे ज़हर देख चुका हूँ II

किरदार गज़ब वो , हुए बहरूपिये कायल
बदलाव पे बदलाव बशर देख चुका हूँ II

सहकर भी सितम जब रहा ख़ामोश शराफ़त
दुष्टों के हौसले का ग़दर देख चुका हूँ II

 

सुमन सिंह ‘याशी’

वास्को डा गामा,गोवा

शब्द

आब = पानी
चाक = फटा हुआ, कटा हुआ, चीरा हुआ
लियाक़त = लायक होने की अवस्था या भाव, योग्यता,
शिकस्तनी = बर्बाद होने के लायक़, नाकामयाबी
तुर्फ़ा = अनोखा, अजीब
अवतार = विशिष्ट व्यक्ति
किरदार = शख़्सियत
बशर= इंसान, आदमी, मनुष्य
आब-ए-हयात = अमृत या अमृत-जल

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