
छोड़ दिया
( Chhod diya )
?धीरे धीरे ही मगर छोड़ दिया,
तेरी आदत सी पड़ गयी थी मुझे।
कब तलक बेजती को सहते हम,
खुद से नफरत सी हो गयी थी मुझे।
मैनें खुद को भूला दी तेरे लिए,
फिर भी मै तुझसा बन ना पाया हूँ,
कब तलक कशमकश में रहते हम,
अब बगावत सी हो गयी थी मुझे।
धीरे धीरे ही मगर छोड़ दिया….
?छोड़ कर सारे गिल ए शिकवों को,
सोचा था फिर से दिल लगाएगे।
मन को अपने दबा के रखेगे,
टूटे रिश्तों को फिर बनाएगे।
थोड़ी कोशिश तो की थी तुमने भी,
पर मुझे तुम समझ न पाए थे,
कब तलक जीते ग़म के साये में,
अब अदावत सी हो गयी थी मुझे।
धीरे धीरे ही मगर छोड़ दिया…..
?दिल को मजबूत किया इतना की,
प्यार आँखों से ना छलके मेरे।
मन के भावों को इतना बाँधा की,
प्यार बातों से ना झलके मेरे।
जिससे तकलीफ रही उसको भी,
सोचा सीने से लगा देखे हम।
बस यही काम कर ना पाए हम,
अब हिकारत सी हो गयी थी मुझे।
धीरे धीरे ही मगर छोड़ दिया…
?जा खुश रहे तू जहाँ भी रहे आबाद रहे,
हूंक कोई न रहे तुझमे में भी हुंकार रहे।
याद करके पुराने लम्हों को,
तेरे चेहरे पे भी बस मुस्कान रहे।
गर मिले हम कही जो महफिल में,
आँखों में प्यार भर जता देना,
ये दिखावा ही कर ना पाए हम,
बस शिकायत सी हो गयी थी मुझे।
धीरे धीरे ही मगर छोड़ दिया…
कवि : शेर सिंह हुंकार
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )
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