कलम की आवाज | Kavita
कलम की आवाज
( Kalam ki aawaj )
( मेरी कलम की आवाज सर्वश्रेष्ठ अभिनेता दिलीप साहब जी को समर्पित करती हूं )
“संघर्षों से जूझता रहा मगर हार न मानी,
करता रहा कोशिश मगर जुबां पर कभी न आई दर्द की कहानी”।
कुल्हाड़ी में लकड़ी का दस्ता न होता तो लकड़ी के काटने का रास्ता न होता।
ज्वार भाटा की तरंगों से ऐसी हुई हलचल नया दौर चल पड़ा।
जुगनू की तरह आंखों में लेकर प्यार।
अकेले ही चल पड़ा नदिया के पार।
फुटपाथ से दीदार किया पारो का बन गया देवदास,
पैगाम छोड़ गया एक मामूली सा आदमी दुनिया के पास ।
mughal-e-azam में सलीम ने अनारकली पर बेइंतहा मोहब्बत लुटाई।
फिर एक जोगन बाबुल के आंगन से उड़कर किले में गोपी के पास आई।
संघर्ष कोशिश इंसानियत दास्तां बयां करती है।
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मजदूर से लीडर तक की सफर तय करती है।
“अंदाज़ कोहिनूर था”
एक ऐसी क्रांति आई राम श्याम बनकर विधाता के नाम की मशाल जलाई ।
कभी मेले में कभी गंगा जमुना के तट पर गाती थी यही तराना।” उड़े जब जब जुल्फें तेरी”
अमर हो गए, दाग, न लगने दिया घर की इज्जत, व ‘आन’ में
पानी फिर गया सौदागर के अरमान में।
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लेखिका :-गीता पति ( प्रिया) उत्तराखंड