वो बचपन के दिन | Bachpan par kavita
°°° वो बचपन के दिन °°°
( Wo bachpan ke din )
कहाँ गए बचपन के, सुनहरे प्यारे “वो” दिन ||
1. कुछ पल ही सही,पर हम भी कभी,साहूकारों मे आते थे |
जब -तब हमनें बाजी मारी,तब नगर सेठ कहलाते थे |
कुछ पल के लिए ,कुछ क्षण के लिए,दरबार हमारा लगता था |
हम चोर बने,और बने सिपाही ,संसार हमारा लगता था |
कहाँ गए बचपन के,सुनहरे प्यारे “वो” दिन ||
2. छम -छम करती बारिस आती,हम ब्यापरी बन जाते थे |
कागज की सही,दो -चार नाव के मालिक हम कहलाते थे |
कलाकार थे हम इतने,मिट्टी के महल बनाते थे |
दो शब्द सही,पर दिल खोल कर,गला फाड चिल्लाते थे |
कहाँ गए बचपन के,सुनहरे प्यारे “वो” दिन ||
3. खिलवाड सही,पर वाहनों की,लंम्बी कतारें लगती थीं |
कंकड-पत्थर का लाद बोझ,वो बिन परमिट के चलती थीं |
बिन इंधन,बिन खर्चे चलतीं ,ना कोई चालक होता था |
न ट्राफिक की होती टेंशन ,न कोई लालच होता था |
कहाँ गए बचपन के,सुनहरे प्यारे “वो” दिन ||
4.सब हमें देख मुस्काते थे,अब उसे देख ले जाते हैं |
हम मम्मी -पापा कहते थे,अब मॉम -डैड बुलाते हैं |
हम खेलते थे सारे मिलकर,अब कंप्यूटर-मोबाइल चलाते हैं |
हम हर पल हंसते -गाते थे,अब टेंशन पाले जाते हैं |
कहाँ गए बचपन के,सुनहरे प्यारे “वो” दिन ||
लेखक—–> सुदीश कुमार सोनी
(जबलपुर )