छुपा कर रक्खें
छुपा कर रक्खें
हो न जाए कहीं रुसवाई छुपा कर रक्खें
इन अमीरों से शनासाई छुपा कर रक्खें
फ़ायदा कुछ नहीं चतुराई छुपा कर रक्खें
मूर्ख के सामने दानाई छुपा कर रक्खें
कौन करता है यक़ीं आपकी इन बातों पर
इसलिए अपनी ये सच्चाई छुपा कर रक्खें
लालची कोई भ्रमर इसको चुरा ले न कहीं
फूल कलियाँ सभी अँगड़ाई छुपा कर रक्खें
सब उड़ाएँगें हँसीं साथ न देगा कोई
दर्द की कुछ नहीं सुनवाई छुपा कर रक्खें
आ न जाना कभी तुम साहिलों के झाँसे में
ये समंदर सदा गहराई छुपा कर रक्खें
ज़ख़्म ही देंगे सभी क्या दवा देंगे मीना
राज़दारों से भी परछाई छुपा कर रक्खें

कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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