एक खूंखार खूनी बन गया जेल का रसोईया
वह खूनी भागना चाहता था खून करके किसी व्यक्ति का लेकिन वह पुलिस कि पकड़ में आ गया और उसे गिरफ्तार कर उम्र कैद कि सजा सुनाई गई…
कारण जो भी हो हमारी मानसिकता एक खूनी को कभी अच्छे विचारों के साथ स्वीकार नहीं कर सकती बल्कि करेगी ही नहीं ,एक चोर ,एक डकैती, एक खूनी बनेगा नहीं कभी हमारी नजर में सज्जन…
जब उस खूनी कैदी को खून करने के जुर्म में सुनाई गई थी उम्र कैद कि सजा तब उसकी निरस्त आँखों में आग के अंगारे उबलने लगे थे ,यह देखकर जेलर साहब ने अपने मन में ठान लिया था कि वह इस खूनी कैदी को इन्सान बनाकर ही रहेंगे और उन्होने उस कैदी को जेल में कैद करने के लिए जेल के नियम के चलते डाल दी थी हथकड़ियां…
उस खूनी का एक एक दिन जेल में बड़ी मुश्किल से कट रहा था ,कारण खून का चाहें कोई भी रहा हो जैसे पैसा,ईर्षा वश या फिर क्रोध, भय चाहें जो भी कारण रहा हो लेकिन उस खूनी ने कर दिया था उस व्यक्ति का खून और जिस जेल में उसे कैद किया गया था ।
उस जेल में और भी बहुत से कैदी कैद किए गए थे और कुछ बेकसूर बेगुनहगार लोग भी झूठे गुनाह में उसी जेल में कैद थे , धीरे-धीरे दुसरे अन्य कैदियों के साथ उस खूनी कैदी कि मित्रता बढ़ती गई और वह उन कैदियों के साथ बहुत ही अपनेपन से रहने लगा था ।
जो भी सजा सुनाई गई थी वह जेल में पूरी कर रहा था और बाकी कैदियों को उनके गुनाह की वजह पूछता उन्हे मानसिक रूप से आधार महसूस कराता और उनके साथ कभी-कभार हंसी-मजाक भी करता नजर आ जाता ,और यह सबकुछ जेलर साहब की नजर से छिपता नहीं था ।
जेलर साहब हर बार उसका यह व्यवहार देखकर सोच में पड़ जाते और उन्होने एक दिन उस कैदी को अपने कैबिन में मिलने के लिए बुलाया और कहा कि ,” आज के बाद तुम जेल के सारे कैदियों को रसोई बनाकर दोगे …., ” जेलर साहब कि यह ऑर्डर सुनकर वह खूनी आश्चर्यजनक रूप से जेलर साहब कि ओर देखता रहा लेकिन अब कुछ कहना तो दूर उसने हां में ही अपनी गर्दन हिलाकर स्वीकृती दरशाई और वहाँ से चला गया ।
दुसरे दिन से ही उस खूनी को रसोई के काम में लगाया गया जेल के अंदर रसोई घर संभालने की जिम्मेदारी उस खूनी पर सौंपी गई और सब्जियां चुनना उसे साफ कर धोना और सारा भोजन तैयार कर सब क़ैदियों को भोजन परोसने का काम वह करने लगा ।
उसके सर के बाल काफी लंबे हो गये थे और दाढ़ी मुँछ भी काफी बढ़ गई थी इसलिए अपने बालों का वह उपर जुड़ा बांधकर रखता और अपना काम बड़ी मेहनत और लगन से करता , रसोई बनाने की आदत ने धीरे-धीरे उसे मनुष्य जीवन का एहसास कराया जब भोजन वह बनाता था और बाकी कैदियों को परोसता और वह कैदी उसे बहुत सराहकर खाते और उसकी तारीफ करते तो उसे बहुत खुशी होती ।
अब उस खूनी के लिए वह कैदखाना न होकर एक परिवार बन गया था उस खूनी के स्वभाव का खूंखार पन कंही गुम हो गया था और वह खूनी धीरे-धीरे मनुष्य बन रहा था ,उसकी आँखों कि क्रोध कि आग अब धीरे-धीरे करूणा रूपी सागर में बदलने लगी थी….
मनुष्य से भी आगे वह निकल गया था और अब वह जी रहा था मनुष्यता का जीवन ।
जेलर साहब ने आज पहली बार उसे खूनी न कहकर उसके नाम से पुकारा था ,” मानव….” और यह नाम सुनकर मानव की आँखे आंसुओ से भर गई थी और वह छलकने लगी थी,उसने स्वयं को थोड़ा संभालते हुए जेलर साहब को जी साहब कहते हुए हाथ जोड़कर प्रणाम किया , तब।
जेलर साहब ने मानव के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा की,तुम्हारी सजा पूरी हो गई है अब तुम इस कैदखाने से जा सकते हो ,तब मानव कि आंखों में फिर से आँसू भर आए और उसने जेलर साहब से कहा ,नही साहब यह मेरे लिए कैदखाना नहीं हैं ।
कैदखाना तो मेरे लिए बाहर कि दुनियां थी जिसमें मैं मनुष्य होने का कर्तव्य भूल सा गया था चोरी,डकैती, यहाँ तक कि मैंने खून तक कर दिया था वह तो ईश्वर की कृपा रहीं कि आपके गिरफ्त में मैं आ गया वरना पता नहीं और कितने गुनाह मैं कर जाता , आपने मुझे हैवान से मनुष्य बना दिया ।
मनुष्य जीवन क्या होता हैं यह बताया ,माँ अन्नपूर्णा की सेवा में लगाया और मनुष्यता से प्रेम करना सिखाया इस हिसाब से तो आप मेरे लिए भगवान के समान हो गयें हो , आप जिसे कैदखाना, जेल कह रहें हो वह तो मेरे लिए एक मंदिर के समान पवित्र स्थान हैं ,आधा जीवन बीत गया इस मंदिर की सेवा में भोजन रूपी प्रसाद बनाते बनाते अब यहाँ से कहाँ जाना साहब…!
बालों में सफेदी चढ़ गई बुढ़ापा आ गया अब ,यह भले ही मेरी जन्मस्थली नहीं है लेकिन सौभाग्य से मेरी कर्मस्थली जरूर हैं ,अब मैं यहाँ से कंही नहीं जाऊँगा साहब…!
मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करता हूँ कि आप मुझे यंही पर रहने की अनुमति दे दीजिए यह कहते कहते मानव जेलर साहब के पैरों पर गीर गया और जेलर साहब ने उसे उठाकर अपने गले लगा लिया ।
जेलर साहब कि भी आँखों से आँसू बहने लगे थे और वह मानव कि बात को मना नहीं कर सके और उन्होने मानव को कुछ मानधन मंजूर कर वंही जेल में सारे कैदियों की रसोई बनाने के लिए रख लिया ,मानव का एक खूनी के रूप में जो दशाहिन जीवन था वह एक उचित योग्य दिशा कि ओर निकल पड़ा था…
मानव ने फीर से हाथ जोड़कर जेलर साहब को धन्यवाद दिया और सारे कैदियों ने मानव के जेल में ही रूकने के निर्णय का स्वागत कर जेल में धूमधाम से सारे कैदियों ने हर्षोल्लास मनाया ।
इस तरह से एक खूंखार खूनी बन गया था हमेशा के लिए जेल का रसोईया…..
कैदखाने का रसोईया…..

चौहान शुभांगी मगनसिंह
लातूर महाराष्ट्र
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