दलबदल | व्यंग्य रचना
दलबदल
( Dalbadal )
शर्म कहां की,
कैसी शराफत,
सिध्दांत सभी,
अपने बदल !
मिलेगी सत्ता,
समय के साथ चल!
दे तलाक़,
इस पक्ष को,
उसमें चल !
हो रही है,
सत्ता के गलियारे,
उथल-पुथल!
तू भी अपना,
मन बना,
वर्ना पछताएगा कल!
सब करते हैं,
तू भी कर!
चिंता कैसी,
किसका डर?
पंजा नहीं,ना सही,
यह ले कमल!
जमील अंसारी
हिन्दी, मराठी, उर्दू कवि
हास्य व्यंग्य शिल्पी
कामठी, नागपुर
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