Dard
Dard

दर्द

( Dard )

 

दर्द छलक ही पड़ता है
जब गहराइयाँ छू लेती हैं आकाश
खामोश जबान भी बोल उठती है
फिर मिले अंधेरा या प्रकाश

परिधि में ही घूमती जिंदगी
तोड़ देती है बांध सहनशीलता की
समझ नहीं पाता वही जब
रहती है उम्मीद जिस पर आस्था की

लग सकते हैं अगर शब्द एक दिल से
तो भावनाओं की हार का हश्र क्या होगा
टूटते ही रहते हैं तारे गगन से
ध्रुव के टूटने का हश्र क्या होगा

हर दरख्त से मिलते नहीं फल मीठे
खारों पर भरोसा कहां होता है
समझदार ही न समझे बात अगर
तो ना समझो पर असर कहां होता है

काट कर डालियाँ,फूलों से मोहब्बत
खुशबू का असर कितना होगा
ना समझ पाए यह बात अगर
तो जाने बहारों का मौसम कैसा होगा

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

यह भी पढ़ें :-

शक | Hindi Poem Shak

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here