
दर्पण
( Darpan )
गोरा गोरा गाल गोरी, दर्पण रही निहार।
सांवरी सूरत मोहि, मोहन रिझाइए।
हाथों में ले गगरिया, गांव चली गुजरिया।
दर्पण सा मन मेरा, प्रियतम आइए।
चाल चले मतवाली, चंचल नैनो वाली।
मन में हिलोरें लेती, आईना दिखाइए।
दर्पण दिखा देता है, मन में छिपे भावों को।
फागुन महीना आया, फाग गीत गाइए।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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