Darpan par kavita

दर्पण कभी झूठ नही बोलता | Darpan par kavita

 दर्पण कभी झूठ नही बोलता

( Darpan kabhi jhooth nahi bolta ) 

 

दर्पण कभी कोई झूठ नही बोलता,

पक्षपात यें किसी से भी ना करता।

जैसा है वैसा यें प्रतिबिम्ब दिखाता,

जो इसमें देखता ‌इठलाता-शर्माता।।

 

सामनें आकर सभी इसके सॅंवरता,

बहुत ही गहरा इससे सबका नाता।

अनेंको चेहरे यह बनाकर दिखाता,

दर्पण कभी कोई झूठ नहीं बोलता।।

 

पहन कर सूट साड़ी घुमकर देखते,

बाल बनातें एवं ख़ुद को वें सजाते।

हर-रोज व्यक्ति इसके सामने जातें,

मूॅंछ मरोड़ कर अपनें आप इतराते।‌।

 

घर-घर यह आसानी से मिल जाता,

छोटा बड़ा सभी का मन मोह लेता।

आईना काॅंच ग्लास मिरर कहलाता,

इन्सान को इन्सान से रुबरु कराता।।

 

अगर टूटा कभी तो फिर ना जुड़ता,

यहीं आईना अनेंक बातें समझाता।

रहों एक मिलकर यहीं बात बताता,

अहसास स्वयं से यें दर्पण कराता।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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