दीप | Deep
दीप
( Deep )
न सही विश्वास मेरा,
पूछ ले उस दीप से।
जो रात सारी रहा जलता,
साथ मेरे बन प्रतिबम्ब।।
हाल सारा जायेगा कह,
दीप वह जो बुझ गया।
जगने का सबब मेरा,
और जलने के मजा।।
मांगतीं विश्वास का बल,
देख ले इक नजर भर।
बस वही लेकर मैं संबल,
जलती रहूँगी चिर-युगों तक।।
हाथ गहकर बस तू कह दे,
सफल होगी यह प्रतीक्षा।
उम्र को विश्वास की,
बहुत है वह एक ही पल।।
डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल ( मप्र )