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लाली उषा की
( Lali usha ki )
युगों की रची
सांझ उषा की
न पर कल्पना
बिम्ब उनमें समाये
बनाये हमने तो
नयन दो मनुज के
जहाँ कल्पना
स्वप्न ने प्राण पाये।
हंसी में खिली
धूप में चांदनी भी
दृगों में जले
दीप मेघ छाये।
मनुज की महाप्रणता
तोड़कर तुम
अजर खंड
उसको कहाँ जोड़ दोगे ?
डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल ( मप्र )