बनना है तो दीपक बन

( Banna hai to deepak ban ) 

 

अगर बनना है तो दीपक बन,
दिल जीतना है तो बाती बन।
छू ही, लेते वह चाॅंद और तारें,
भाव हो जिसके प्यारे ये मन।।

जब ये जलता प्रकाश करता,
लेकिन स्वयं अन्धेरे में रहता।
दीपक से है यह बाती महान,
जलती करती प्रकाश जहान।।

सीखो ‌सभी ये बाती से आज,
बनना जलना इसके है काज।
निर्माण करते इसका इसलिए,
उजाला करे यह सबके लिए।।

दीपक को सभी करते है याद,
बाती का कोई लेते नही नाम।
मानव धर्म हमको है निभाना,
दीपक व बाती संग लेवे नाम।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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