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दीवानगी | Deewangee

दीवानगी

( Deewangee )

 

शराब तो नहीं पीता मैं
पर रहता हूं उसके नशे में चूर हरदम
वह ऐसी चीज ही लाजवाब है कि
नशा उतरता ही नहीं

बड़ी हसीन तो नहीं
पर दीवानगी का आलम यह कि
सर से पांव तक भरी मादकता से
उतरती ही नहीं सोच से

पूरी कायनात भी फीकी है उसके बिना
मेरी पसंदगी कि इंतिहाँ है वह मेरी धड़कन मेरी जान है

जानता हूं यह भी कि
मेरी है मेरे लिए है फिर भी मेरी ही नहीं सिर्फ मेरे लिए
दीवाने हैं कई उसके
मुझसे भी आगे बढ़कर ,फिर भी
मेरी चाहत है उसी की
मेरी भी बन के रहे फिर हो किसी की
बड़ी ही प्यारी है अदाएं उसकी
कभी कर्कश तो कभी सुरीली
सदाएं हैं उसकी
नगाड़े सी बजती है कभी
संगीत सी लगती है
कभी मेरा इश्क मेरी भी जिंदगी है मेरी प्रिया

कईयों की अरमान है, जान है
अभिमान भी, स्वाभिमान भी

माना, कि रुपवान नहीं वह
फिर भी रुपया है वह
नोट भी कहते हैं लोग उसे
वह वही है
जो मुझे हि नहीं सबकी प्यारी है
सभी की जरूरत भी है वह

 

मोहन तिवारी

( मुंबई )

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