दीबार

दीबार | Deewar kavita

 “दीबार” 

( Deewar )

 

–>मत बनने दो रिस्तों में “दीबार” ||

1.अगर खडी हो घर-आंगन, एक ओट समझ मे आती है |
छोटी और बड़ी मिलकर एक, सुंदर आवास बानाती है |
मत खडी होने दो रिस्तों मे, टकरार पैदा कारती है |
हंसते गाते हमारे अपनों मे, दरार पैदा करती है |

–>मत बनने दो रिस्तों में “दीबार” ||

2.अपने घर की दीबारों पर, चमके रंग नगीनों से |
छोटी-बडी अलग-अलग सी, बनती हांथ मशीनों से |
बिना बनाए भी बन जाती, दीबार एक अनजानी सी |
हमारा-अपना भी कोई था, बनती एक कहानी सी |

–>मत बनने दो रिस्तों में “दीबार” ||

3.चार दीबार बनाने पर, बनता सुंदर आबास है |
रहने को एक घर मिलता, खुशियों का निबास है |
चार के ऊपर भरी पड़ती, ऐसी भी एक दीबार है |
मत बनने दो बीच दिलों के, तोड़ दो ये बेकार है |

–>मत बनने दो रिस्तों में “दीबार” ||

4.मत काम करो रूठे कोई, अपने गरम मिजाज से |
गलत-फहमियां दूर करेंगे, सोचें हम यह आज से |
तोड़ दो उन दीबारों को, जो दरारें पैदा करती हैं |
खुल के जियो अपनों संग, जिन्दगी यही कहती है |

–>मत बनने दो रिस्तों में “दीबार” ||

 

कवि:  सुदीश भारतवासी

 

 

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