ढ़ाई आखर प्रेम के (दोहे)
ढ़ाई आखर प्रेम के ( दोहे )
( मंजूर के दोहे )
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१)
ढ़ाई आखर प्रेम के,पंडित दियो बनाय।
सद्भावना के पथ चले,जग को हिंद सुहाय।।
२)
ढ़ाई आखर प्रेम के,मित्रता दियो बढ़ाए।
शत्रुता मिटाकर शत्रु जन,करने सलाह आए।।
३)
ढ़ाई आखर प्रेम के, हैं उच्च शक्ति के पुंज।
तमस मिटा रौशन करें,हर ले जग के धुंध।।
४)
ढ़ाई आखर प्रेम के, करें कई चमत्कार।
दंभी दंभ त्याग करें,शुरू करें सहकार।।
५)
ढ़ाई आखर प्रेम के, मानवता को भाए।
सह-अस्तित्व की भावना,रत्नवती को सुहाय।।
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लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।