माँ
माँ

माँ

( Maa )

 

जिसके होने से मैं खुद को मुकमल मानती हूं,
मेरी मां के हर लफ्जों में दुआ है जानती हूँ ।
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मां शब्द जितना खूबसूरत है उससे भी अधिक खूबसूरत इसका एहसास है । संसार मे किसी भी जीव को जन्म देने का आशीर्वाद मां को ही प्राप्त है ।
मां की महत्ता को शब्दों में बाँधा जाना असंभव है । मां की छवि को विचारों में बांधा जाना एक दुर्लभ कार्य है ।

मुनव्वर राना साहब ने माँ के लिए बहुत खूबसूरती से लिखा है कि

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ए अंधेरे देख, मुंह तेरा काला हो गया ,
मां ने आंखें खोल दी, घर में उजाला हो गया।
सिर्फ मां है, जो मुझसे खफा नहीं होती,
मां जब बहुत दुखी होती है तो रो देती है
??

माँ वह है जो हमें जन्म देती है, यहीं कारण है कि संसार में हर जीवनदायनी वस्तु को माँ की संज्ञा दी गयी है। यदि हमारे जीवन के शुरुआती समय में कोई हमारे सुख-दुख में हमारा साथी होता है तो वह हमारी माँ ही होती है। माँ हमें कभी इस बात का एहसास नही होने देती की संकट की घड़ी में हम अकेले हैं।

एक स्त्री अपने जीवन में पत्नी, बेटी, बहू जैसे ना जाने कितने रिश्ते निभाती है, लेकिन इन सभी रिश्तों में से जिस रिश्ते को सबसे ज्यादे सम्मान प्राप्त है वह माँ का रिश्ता है। मातृत्व वह बंधन है जिसकी व्याख्या शब्दों में नही की जा सकती है।

माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

यहीं कारण है प्रायः संसार में ज्यादेतर जीवनदायनी और सम्माननीय रिश्ते को माँ की संज्ञा दी गयी है जैसे कि भारत माँ, धरती माँ, पृथ्वी माँ, प्रकृति माँ, गौ माँ आदि।

इसके साथ ही माँ को प्रेम और त्याग की प्रतिमूर्ति भी माना गया है। इतिहास कई सारी ऐसे घटनाओं के वर्णन से भरा पड़ा हुआ है। जिसमें मताओं ने अपने संतानों के लिए विभिन्न प्रकार के दुख सहते हुए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।

यही कारण है कि माँ के इस रिश्तें को आज भी संसार भर में सबसे सम्मानित तथा महत्वपूर्ण रिश्तों में से एक माना जाता है। मेरे मुख से अनायास निकल ही आता है कि –

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तेरे चरणों को आंसुओं से धोऊं तो भी कम है
मां तेरे उपकारों से यह आंखें आज भी नम है
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यदि हमारे जीवन के शुरुआती समय में कोई हमारे सुख-दुख में हमारा साथी होता है तो वह हमारी माँ ही होती है। माँ हमें कभी इस बात का एहसास नही होने देती की संकट के घड़ी में हम अकेले हैं। इसी कारणवश हमारे जीवन में माँ के महत्व को नकारा नही जा सकता है।

माँ के बिना जीवन की कल्पना भी नही कर सकते हैं। माँ के महानता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इंसान भगवान का नाम लेना भले ही भूल जाये परंतु मां का अस्तित्व नकार नहीं सकता ।

एक शिक्षक से लेकर पालनकर्ता जैसी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाती है। इसलिए हमें अपनी माँ का सदैव सम्मान करना चाहिए क्योंकि ईश्वर हमसे भले ही नाराज हो जाये लेकिन एक माँ अपने बच्चों से कभी नाराज नही हो सकती है।

यही कारण है कि हमारे जीवन में माँ के इस रिश्ते को अन्य सभी रिश्तों से इतना ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है
उसे सदैव खुश रखने की कोशिश करनी चाहिए ।

मैं अपनी माँ को एक अभिभावक तथा शिक्षक के साथ ही अपना सबसे अच्छी मार्गदर्शक एवं मित्र भी मानती हूं क्योंकि चाहे कुछ भी हो जाये लेकिन मेरे प्रति उसका प्रेम और स्नेह कभी कम नही होता है।

जब भी मैं किसी संकट या फिर तकलीफ में होती हूं तो वह बिना बताये ही मेरी परेशानियों के विषय में जान जाती है और मेरी सहायता करने का हरसंभव प्रयास करती है।
वह खुद से भी ज्यादा मेरी सुख-सुविधाओं को लेकर चिंतित रहती है।

एक माँ अपनी संतान की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी विपत्तियों का सामना करने का साहस रखती है। माँ को पृथ्वी पर ईश्वर का रुप माना गया है और इसलिए यह कहावत भी काफी प्रचलित है कि
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“ईश्वर हर जगह मौजूद नही रह सकता है इसलिए उसने माँ को बनाया है।”
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जब मैं किसी समस्या में होती हूं, तो वह मुझमें विश्वास पैदा करने का कार्य करती है। है और मुझे जीवन के इन बाधाओँ को पार करने शक्ति प्रदान करती है, उसके द्वारा बतायी गयी छोटी-छोटी बातों ने मेरे जीवन में बड़ा परिवर्तन किया है।

यहीं कारण है कि मैं अपने माँ को अपना आदर्श मानती हूं।माँ को प्रथम शिक्षक के रुप में भी जाना जाता है। इसीलिए हम हमेशा कहते हैं कि

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ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमां कहते हैं
निस्वार्थ दामन में खुशियां भर दे उसे मां कहते हैं
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बचपन से ही एक माँ अपने बच्चे को नेकी, सदाचार तथा हमेशा सत्य के मार्ग पर चलने जैसी महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है। जब भी हम अपने जीवन में अपना रास्ता भटक जाते हैं तो हमारी माँ हमें सदैव सदमार्ग पर लाने का प्रयास करती है।

कोई भी माँ कभी यह नही चाहती है कि उस के बच्चे गलत कार्यों में लिप्त रहे।
जब मैं छोटी थी तो मेरी माँ ने मेरी उंगली पकड़कर चलना सिखाया। जब मैं थोडी बडी हुई तो मेरी माँ ने मुझे घर पर मुझे प्रारंभिक शिक्षा भी दी।

जब भी मैं किसी कार्य में असफल हुई तो मेरी माँ ने मुझमें और भी विश्वास जगाया।भले ही मेरी माँ कोई बहुत पढ़ी-लिखी महिला ना हो लेकिन उसके जिदंगी के तुजर्बे से प्राप्त ज्ञान की बातें किसी इंजीनियर या प्रोफेसर के तर्कों से कम नही है।

आज भी वह मुझे कुछ ना कुछ जरुर सिखा पाती है क्योंकि मैं कितनी ही बडी क्यों ना हो जाऊ लेकिन जिंदगी के अनुभव में हमेशा उससे छोटी ही रहूंगी।

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जो बनाए सारे बिगड़े काम
कदमो तले उसके चारों धाम
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यदि मैं ऐसा कहूं तो कोई अतिशयोक्ति न होगी

उन्होंने मुझे जीवन जीने का तरीका भी सीखाया है, मुझे इस बात की शिक्षा दी है कि समाज में किस तरह से व्यवहार करना चाहिए। वह मेरे दुख में मेरे साथ रही हैं, मेरे तकलीफों में मे मेरी शक्ति बनी है और वह मेरे हर सफलता का आधारस्तंभ भी है।

हम अपने जीवन में कितने ही शिक्षित तथा उपाधि धारक क्यों ना हो जाये लेकिन अपने जीवन में जो चीजें हमने अपनी माँ से सीखी होती हैं, वह हमें दूसरा कोई और नही सीखा सकती है। माँ ही जीवन का प्रेरणा स्त्रोत भी है।
कहा गया है कि –

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बिन बताए भी वह हर बात जान लेती है
मुस्कुराते चेहरे से गम पहचान लेती है
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प्रेरणा से हम विकट परिस्थियों में भी किसी लक्ष्य को अपनी क्षमताओं से विकास के अनुरूप सफलता प्राप्त करते हैं
आज तक के अपने जीवन में मैने अपनी माँ को कभी विपत्तियों के आगे घुटने टेकते हुए नही देखा है।

मेरे सुख-सुविधाओं के लिए उन्होंने कभी भी अपने दुखों की परवाह नही की वास्तव में वह त्याग और प्रेम की प्रतिमूर्ति है, मेरी सफलताओं के लिये उन्होंने ना जाने कितने कष्ट सहें है।

उनका व्यवहार, रहन-सहन तथा इच्छाशक्ति मेरे जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा है। ज्यादेतर लोग कार्य करते हैं कि उन्हें प्रसिद्धि प्राप्त हो और वह समाज में नाम कमा सके लेकिन एक माँ कभी भी यह नही सोचती है वह तो बस अपने बच्चों को उनके जीवन में सफल बनाना चाहती है।

वह जो भी कार्य करती है, उसमें उसका अपना कोई स्वार्थ नही होता है।
समाजिक व्यवहार से लेकर ईमानदारी तथा मेहनत जैसी महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है।

मां के हम पर इतने परोपकार होते हैं कि ताउम्र उसकी सेवा करके भी हम उस ऋण को चुका नहीं सकते । अपनी मां के लिए मैं यह जरूर कहना चाहूंगी कि

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मांग लूं मन्नत की फिर वही जहान मिले
फिर वही गोद मिले फिर वही माँ मिले
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किसी भी स्त्री के लिए मां होना बहुत सम्मान की बात है
मां के लिए मैं कुछ लिख सकू इतना काबिल मैं अपने आप को नहीं मानती ।
अपनी लेखनी को विराम देते हुए मैं यही कहूंगी कि –

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चलती फिरती आंखों से अजाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी पर मां देखी है

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डॉ. अलका अरोड़ा
“लेखिका एवं थिएटर आर्टिस्ट”
प्रोफेसर – बी एफ आई टी देहरादून

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