धरती की वेदना
( Dharti ki vedana )
सुनो तुम धरती की वेदना
समझो पहले इसे तुम यहां!
ऋतुएं बदल रही है क्यों आखिर
क्यों तापमान रहने लगा बढ़ा चढ़ा
तुम्हारे मन को जो प्रश्न बेचैन करें
हां वही तो है इस धरती की वेदना।।
कहीं पर खनन हो रहा मृदा का
कहीं अब जंगल नहीं रहा घना,
कहीं धरती खोद रहे खनिज के लिए
कहीं जल के लिए रोज खुद रहा कुआं
कहीं सुनामी आ रही है तो कही पर ,
पढ़ रहा हैं धरती पर भयंकर सूखा ।।
कहीं नदियां प्रदूषित हो रही धरा पर
तो कहीं प्रदूषित हो रहा अब आसमां
जब बढ़ रहा है देखो प्रकृति का खनन
तब सोचो जरा मनुष्य कैसे खुश हुआ ,
करके मनमानी आधुनिक तो हो गया
प्रकृति असंतुलित कर खुद संतुलित वो कहां रहा।
धरती मां की वेदना को पहले तुम समझो जरा…….
यह धरती तुम्हारी मां है इस वेदना को समझो जरा।।
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश
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