धीरे -धीरे जहन से उतरता गया

Ghazal धीरे-धीरे जहन से उतरता गया

धीरे -धीरे जहन से उतरता गया

( Dhire Dhire Jehan Se Utarta Gaya )

 

 

धीरे -धीरे  जहन  से  उतरता  गया,

जो  कभी  प्यार  मेरा  सहारा  रहा।

 

 

जिन्दगी ने मुझे आज सिखला दिया,

मतलबी  दौर  का  वो सिकारा रहा।

 

 

मैने  चाहा  बहुत  टूट  कर प्यार की,

पर  उसे  ना  कभी  ये  गवारा  रहा।

 

 

बाद   वर्षो   मुलाकात   उससे   हुई,

जैसे  दरिया  का दूजा किनारा रहा।

 

✍?

कवि :  शेर सिंह हुंकार

देवरिया ( उत्तर प्रदेश )

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