दिल-ए-नादान
दिल-ए-नादान
दिले नादान तुझे कहीं का रहने न दिया।
ये कौन जाग जाग कर हमें सोने न दिया।।
मुद्दतों बाद नज़र आयी थी बहार मुझे,
बज्म में राज खुल जाने का डर रोने न दिया।।
लोग नहला धुला के कब्र तक पहुंचा आये,
मेरे घर में मुझे कुछ देर भी रहने न दिया।।
वो जो कहते थे जिन्दगी की खुशबू मुझको,
जाने क्या बात थी माले में पिरोने न दिया।।
उसकी फितरत है या वफा है या और कुछ है,
साथ चलता है मगर हमसफर होने न दिया।।
उड़ भी जाओगे तुम भी एक दिन हवा बनकर,
बात दिल की जुबां पे आयी थी कहने न दिया।।
तुम्हारे मकां में जला करते हैं अनेकों सूरज,
शेष घर में मेरे एक दीप भी जलने न दिया।
❤️