Ghazal | दिलों के टूटने की जब कभी शुरुआत होती है
दिलों के टूटने की जब कभी शुरुआत होती है
( Dilon Ke Tootne Ki Jab Kabhi Shuruaat Hoti Hai )
दिलों के टूटने की जब कभी शुरुआत होती है।
कहो कब चैन मिलता है तङफ दिन-रात होती है।।
बहुत मजबूत होते हैं ग़मों को झेलने वाले।
कभी भी उनकी आंखों से नहीं बरसात होती है।।
नहीं ग़म बांटते अपना कभी मिलके किसी से वो।
खुदी सहते दिलों पे जो ग़मों की घात होती है।।
डरेगा छोटे- ग़म से क्या बङों से वास्ता जिसका।
खुशी से झेलने से ही ग़मों की मात होती है।।
बहुत गहरी करे है चोट दिल पे शायरी ग़म की।
तभी तो तेरी ग़ज़लों में “कुमार” कुछ बात होती है ।।
कवि व शायर: मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)
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