Diya Kahe Bujh Gayeel Bhojpuri Kavita

दिया काहे बुझ गईल | Diya Kahe Bujh Gayeel Bhojpuri Kavita

दिया काहे बुझ गईल

( Diya kahe bujh gayeel ) 

 

दिया काहे बुझ गईल
तेल के कमी से, या पईसा के नमी से
सब केहु कहे सुत गईल
दिया काहे बुझ गईल

न कवनो आवाज, न कवनो पता हिलेला
चारो तरफ काहे अंधेरा ही अंधेरा दिखेला
इ शहर में कईसन हावा चलेला
चारो तरफ दर्द भरल आवाज गूंजेला

हर पग पर मातम ही मातम दिखेला
समय बा अईसन ना केहू के तन ढकेला
हर आंख में पहिले आशा , फिर निराशा झलकेला
पानी बिन मछली जईसे, लोग बयाकुल दिखेला

हर तरफ धुआ ही धुआ उडेला
ना केहु आपन सभे पराया दिखेला

हर जगह ठेस ही ठेस ला इंट गडल बा
हर नगर , हर चौराहा पर मौत ही मौत दउडेला
खून से लथ पथ लाश पे इंसान चलेला

लोग काहे लोग के इज्जत से खेलवाड़ करेला
अदामी ही कही जानवर कही हैवान बनेला
काहे अदामी ही अदामी के संहार करेला
देख के ई सब दिल काप उठेला

दिल ईश्वर से हाथ जोड़ विनती करेला
हे ईश्वर ई समय के जलदि से हटा द
चारो ओर दिया ही दिया फिर से जला दऽ

 

रचनाकार – उदय शंकर “प्रसाद”
पूर्व सहायक प्रोफेसर (फ्रेंच विभाग), तमिलनाडु
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