दो पहलू वाला | Kavita Do Pahlu Wala
दो पहलू वाला
( Do Pahlu Wala )
मैं हूं उजाला काला दो पहलू वाला
बिन आनन कानन वाला l
मैं सीधा सदा भोला भाला l
अजब गजब मेरा ठाठ निराला l
हूं भरी गगरिया गुण अवगुण की
मतवाला छैला रंग रंगीला l
मेरी अदाओं पर सब घायल
मेरे गुणों के सब कायल l
जिसका ना हो कोई संगी
ना रहने दूं मैं एकांगी l
चहल-पहल भरी दुनियामें
मैं अजब गजब ढाऊं l
करु असंभव को संभव
कठिन कराज पल में निपटाऊं l
बहुत एहसान किया दुनिया पर
उनकी गाथा मैं ना कह पाऊं l
मैं हूं स्वामी का सच्चा दास
मेरे रहते संकट न आए पास l
उजला पहलू छलकता जाम
महिमा कहते, सुनते वाणी को लगा विराम l
यहां की बातें यहां छोड़ो
आगे का सुनो हाले बयान l
बहुत ही कड़वा तीखा काला पहलू
मीत सुन धर कर ध्यान l
काले पहलू में सब चौपट लगता है
तम में लिपटा भविष्य दिखाता है l
युवा, बाल, वृद्ध, सबको लगी मेरी बीमारी
इसके मस्त नशे में डूबी दुनिया सारी l
भूला खेलकूद बच्चों का बचपन खाया l
कर्महीन संस्कारहीन उद्दंड बनाया l
नशा घोला युवा जीवन में
जीवन हुआ अपंग
चलते-फिरते शौच में यह बीमारी रहे संग l
अपने मकड़ जाल में सबको फसाया
भूला खाना पीना ऐसा भरमाया l
घर के हर सदस्य को चढ़ी रहे मेरी तरंग
मिल करें हास~ परिहास हुए भूले बिसरे प्रसंग l
ऐसा नाच नचाया सब हो गए बेरंग
देख दुर्गति ऐसी कवि जरा हटके। भी हो गया दंग l
गुणों भरी छलकाती गागर हूं
अवगुणों से भरा सागर हूं l
मैं मोबाइल मैं मोबाइल
अंगुलियों पर दुनिया नचाई
राजेंद्र कुमार रुंगटा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)