दोस्ती में ही जो वफ़ा मिलती | Ghazal dosti
दोस्ती में ही जो वफ़ा मिलती !
( Dosti mein hi jo wafa milti )
दोस्ती में ही जो वफ़ा मिलती !
रोज़ तेरी दिल में सदा मिलती
मंजिलें मिल जाती मुझे मेरी
जो मुझे अपनों से दुआ मिलती
रोज़ ग़म से न यूं तड़पता फ़िर
जीस्त में जो ख़ुशी ख़ुदा मिलती
ख़त्म हो जाती नफ़रतों की बू
प्यार की जो ख़ुदा हवा मिलती
दुश्मनी की न होती फ़िर बातें
दोस्ती में नहीं जफ़ा मिलती
दर्द ग़म दें जाती है दिल में यादें
प्यार की राहें ही कहा मिलती
मैं नहीं डूबता गमों में यूं
प्यार की आज़म को दवा मिलती
❣️
शायर: आज़म नैय्यर