मुहब्बत की मिली ये कब  दवा है
मुहब्बत की मिली ये कब  दवा है

मुहब्बत की मिली ये कब  दवा है

( Muhabbat ki mili ye kab dava hai )

 

 

मुहब्बत की मिली ये कब  दवा है

मिली बस नफ़रतों की ही जफ़ा है

 

मिलें है ग़म मुहब्बत के  वफ़ा में

निकलती दिल से आहें अब सदा है

 

सलामत वो रहे बस हो जहां भी

यही दिल की हमेशा बस  दुआ है

 

हमेशा के लिए बिछड़ा वही फ़िर

मेरे वो साथ बस दो पल  रहा है

 

दग़ा आता उसे करना यकीं में

रही उसके नहीं दिल में वफ़ा है

 

गया शहर का कोई मुझको बताकर

परेशां है वो ही किसी से सुना है

 

भेजे नफ़रतों के ख़ंजर और मेरी

जिसे प्यार का फूल आज़म दिया है

 

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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