डॉ के एल सोनकर ‘सौमित्र’ की कविताएँ | Dr. K. L. Sonkar Poetry

क्या करूं

 

समय है
काम नहीं है
काम है
समय नहीं है
दोनो है
पैसा नहीं है
पैसा है
बल नहीं है
बल है
तीनो नहीं है
सब है
सम्मान नहीं है
आखिर
तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं
इस अनियंत्रित;
अव्यवस्थित
समाज व्यवस्था में रहकर ?

 

दीवार

 

लगता है
ये दीवार कितनी अहम है
कितनी अनिवार्य
हमारे, आपके
और इस पूरे क़ायनात के
अस्तित्व के लिये।

अन्यथा
हमारा-आपका अस्तित्व
अलग क्यों होता

क्यों होता
खट्टा,मीठा,तीखा और चटपटा का स्वाद ?
कैसे होती
अमृत,शराब,औषधि
और गरल की पहचान ?
कैसे जानते हम
चाँद,तारे और सूरज के गुणकर्म ?

और यहाँ तक कि
देवता और दानव को भी अलग नहीं कर पाते
नहीं कर पाते अलग
दुःख और सुख को भी
पौधों और जन्तुओं को भी
अपनों और परायों को भी
और यहाँ तक कि मानवों और मानवों को भी।

माना कि ये दीवार नहीं होती
तो इस क़ायनात में
सब कुछ वैसा नही होता
जैसा कि है
साँप, साँप नहीं होता
नहीं होती उसकी ज़हरीली ग्रन्थि
और कोई नहीं मरता उसके दंश से।

नहीं होते खट्टे-मीठे अनुभव
नहीं होती इतनी भाग-दौड़
नहीं होता कोई संघर्ष
नहीं होता इतना आडम्बर
द्वेष; डाह; ईर्ष्या और जिजीविषा
आदमी-आदमी के बीच।

नहीं गढ़नी पड़ती
प्रकृति को इतने घड़े
नहीं होते इतने रंग
नहीं होते इतने विचार
नहीं होते इतने वैविध्य
और नहीं खड़े होते पहचान के संकट।

 

डॉ.के.एल. सोनकर ‘सौमित्र’
चन्दवक ,जौनपुर ( उत्तर प्रदेश )

यह भी पढ़ें :-

नहीं पचा पाओगे | Nahi Pacha Paoge

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *