डॉ. राही की कविताएं | Dr. Rahi Hindi Poetry
हृदि समंदर !
मन के अन्दर !
एक समन्दर !
एक समन्दर !
मन के अन्दर ।
गहरा – उथला
उथला – गहरा
तट पे बालू –
रेत समन्दर ।
इच्छाओं की
नीलिमा ले
मन का है
आकाश समन्दर।
इसमें सपनों
के मोती हैं
संघर्षों की
प्यास समन्दर।
इसके गहरे
पानी पैठ
अनुभव के हैं
ज्वार समन्दर।
ये रत्नाकर
उन लोगों का
जो डूबे
संसार समन्दर।
बहा पसीना
खून लहू का
करते खुद से
प्यार समन्दर।।
राजनीतिक बहर
(हरियाणवी बहर)
और किसे का मोर बणाकै
आपणा उल्लू सीधा चाह् वैं ।
घाल हल़ाई बांगी टेढ़ी
उसनै सीधी राह बतावैं।।
मैं हे कल्याण करूंगा थारा
आपणी बिद्या ठीक बतावैं ।
जनसेवा के करकै वादे
सत्ता रसमल़ाई खावैं।।
सीधी बात करणिया दीखैं
जलेबी ज्यूं उल़झे पावैं ।
भोल़ी जनता बीच म्है फंसगी
ना न्यूं बेरा ईब कित जावैं ।।
बोल़ी कुत्ती बैल़ नै भोंसै
कदे परुआ कदे पछुआ आवैं ।
सुण-सुणकै नै बोल़े होगे
चल ‘राही’ बहरे बणज्यांवैं ।।
ओ ताऊ थाम चाल़े करगे
(हरियाणवी कविता)
ताऊ ओ ! थाम चाल़े करगे
घणे कसूते माणस थे
जो कमांदे कमांदे मर गे।
लोही पाटी हल़ जोत सबेरे
हाथें बहाया करदे !
नूल़ा काढणा,पैरी करणा
फल़सी चलाया करदे।
खून चले करदे बुल़दां के पैरां म्है
थाम किसी कष्ट कमाई करगे।।
ताऊ ओ ! थाम चाल़े करगे……….
ना पहरण का ना ओढण का
ना कदे खाण-पीण का चा~~
कदे खब्बे पैर,कदे सोल़े हाथ
तेरै बारहमासी घा~~
सारी उम्र रह् या दु:ख गात म्है
थाम इसी नीम झराई करगे।।
ताऊ ओ ! थाम चाल़े करगे……..
ताऊ-ताई टको टकी और
चलो चली म्है मरगे ।
सारी उम्र के जमीदारे म्है भी
बाल़कां के सिर कर्जा करगे।
कर काल़े हाड़, लहू पसीना आपणा
साहूकारां क धरगे ।
ताऊ ओ ! थाम चाल़े करगे…….
लेखन का अता-पता
मैं !
लिखता हूं
तुमको पता है ।
तुम !
लिखते हो
मुझको पता है ।
मैं !
क्या लिखता हूं
ना तुमको पता है ।
तुम !
क्या लिखते हो
ना मुझको पता है ।
क्यों ?
क्योंकि !
ना तुमने
मुझको पढ़ा है ।
ना मैंने
तुमको पढ़ा है ।।
डॉ. जगदीप शर्मा राही
नरवाणा, हरियाणा।
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