डॉ. राही की कविताएं

डॉ. राही की कविताएं | Dr. Rahi Hindi Poetry

राजनीतिक बहर

(हरियाणवी बहर)

और किसे का मोर बणाकै
आपणा उल्लू सीधा चाह् वैं ।

घाल हल़ाई बांगी टेढ़ी
उसनै सीधी राह बतावैं।।

मैं हे कल्याण करूंगा थारा
आपणी बिद्या ठीक बतावैं ।

जनसेवा के करकै वादे
सत्ता रसमल़ाई खावैं।।

सीधी बात करणिया दीखैं
जलेबी ज्यूं उल़झे पावैं ।

भोल़ी जनता बीच म्है फंसगी
ना न्यूं बेरा ईब कित जावैं ।।

बोल़ी कुत्ती बैल़ नै भोंसै
कदे परुआ कदे पछुआ आवैं ।

सुण-सुणकै नै बोल़े होगे
चल ‘राही’ बहरे बणज्यांवैं ।।

ओ ताऊ थाम चाल़े करगे

(हरियाणवी कविता)

ताऊ ओ ! थाम चाल़े करगे
घणे कसूते माणस थे
जो कमांदे कमांदे मर गे।

लोही पाटी हल़ जोत सबेरे
हाथें बहाया करदे !
नूल़ा काढणा,पैरी करणा
फल़सी चलाया करदे।

खून चले करदे बुल़दां के पैरां म्है
थाम किसी कष्ट कमाई करगे।।

ताऊ ओ ! थाम चाल़े करगे……….

ना पहरण का ना ओढण का
ना कदे खाण-पीण का चा~~
कदे खब्बे पैर,कदे सोल़े हाथ
तेरै बारहमासी घा~~

सारी उम्र रह् या दु:ख गात म्है
थाम इसी नीम झराई करगे।।

ताऊ ओ ! थाम चाल़े करगे……..

ताऊ-ताई टको टकी और
चलो चली म्है मरगे ।
सारी उम्र के जमीदारे म्है भी
बाल़कां के सिर कर्जा करगे।

कर काल़े हाड़, लहू पसीना आपणा
साहूकारां क धरगे ।

ताऊ ओ ! थाम चाल़े करगे…….

लेखन का अता-पता

मैं !
लिखता हूं
तुमको पता है ।

तुम !
लिखते हो
मुझको पता है ।

मैं !
क्या लिखता हूं
ना तुमको पता है ।

तुम !
क्या लिखते हो
ना मुझको पता है ।

क्यों ?
क्योंकि !

ना तुमने
मुझको पढ़ा है ।

ना मैंने
तुमको पढ़ा है ।।

डॉ. जगदीप शर्मा राही
नरवाणा, हरियाणा।

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