मृत्यु!
मृत्यु!

मृत्यु!

( Mrityu )

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कभी आकर चली जाती है,
कभी बेवक्त चली आती है।
जरूरी हो तब नहीं आती,
कभी बरसों बरस इंतजार है कराती।
हाय कितना यह है सताती?
कितना है रूलाती ?
कब आएगी?
यह भी तो नहीं बताती!
एकदम से अचानक कभी आ धमकती है,
जाने कहां से आ टपकती है?
आकर अपनों को पीड़ा अनंत दे जाती है,
रूलाती है;
तो गैरों को खुशियां दे जाती है!
सपने किसी के तोड़ जाती है,
किसी को मालामाल कर जाती है।
आना है इसका निश्चित,
कब कहां कैसे ?
यह नहीं सुनिश्चित।
चलती है उसकी मर्जी,
लगाए कोई कितनी भी अर्जी।
है बड़ी बेदर्द!
ना ही किसी की सुनती,
ना समझती।
करे लाख कोई विनती,
नहीं किसी को छोड़ती;
बंद करती सबकी बोलती।
लिए संग उड़ जाती,
मिटा अस्तित्व खाक में मिलाती।
फिर भी दुनिया समझ न पाती,
माया मोह ही अक्सर हमें है सताती।

बड़ी हठीली
बड़ी अलबेली
है जीवन में सबके आती
मजा सबको चखाती
हुए बिना जज़्बाती
साथ अपने है ले जाती
ना करती भेदभाव
चाहे दीन हो या साव
देती तनिक न भाव
रहें शहर में या गांव
इसे ना किसी से लगाव
ना देखे धूप छांव
इंसाफ बराबर है करती
नहीं किसी से डरती
गजब की इसमें स्फूर्ति
भनक इसकी न लगती
कब आती?
कब ले जाती?
दुनिया देखती रह जाती!
कहानियां पीछे अनंत छोड़ जाती।

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नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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