
ए दोस्त प्यार में खाया फ़रेब है
( E Dost Pyar Mein Khaaya Fareb Hai )
ए दोस्त प्यार में खाया फ़रेब है
हां दें गया है ग़म उसका फ़रेब है
मैं सच कहूं दिल किसी से मत लगाओ
की अक्सर प्यार में मिलता फ़रेब है
की क्या देगा वफ़ा का फ़ूल वो भला
करना उसे तो बस आता फ़रेब है
की मिल गया है ऐसा जख़्म प्यार में
की ख़ूब दिल में ही जलता फ़रेब है
उसको कभी न कहता बेवफ़ा मगर
हां साथ में न जो होता फ़रेब है
डरता हूँ दोस्ती करने से इसलिए
अब हर किसी में ही लगता फ़रेब है
कैसे कह दूं उसे है प्यार ए आज़म
उसकी निग़ाह में देखा फ़रेब है!
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )
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