एक तरफा प्रेम कहानी

( Ek tarfa prem kahani )

 

वह केसर की क्यारी थी,
लड़की नहीं फुलवारी थी।
चाहता था जान से ज़्यादा
मुझको लगती न्यारी थी।

आँखें उसकी कजरारी थी,
पहनी शिफॉन की साड़ी थी,
हम कर चुके थे अपना इज़हार
उसकी कहने की बारी थी।

तुम्हारी नहीं हमारी थी,
अप्सरा से भी प्यारी थी,
घर का कंधे पर बोझ लिए
निभाती वो जिम्मेदारी थी।

अकेली सौ पर भारी थी,
कितनी अद्भुत नारी थी,
बेरोजगारों की दुनिया में
करती नौकरी सरकारी थी।

किस्मत हमारी हारी थी,
वह पुलिस कर्मचारी थी,
मोटे डंडे से दूर वो सबकी
करती प्यार की बीमारी थी।

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’

सूरत ( गुजरात )

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