Environment Protection

पर्यावरण संरक्षण एवं भारतीय संविधान | Essay in Hindi

निबंध : पर्यावरण संरक्षण एवं भारतीय संविधान

( Environment Protection and Constitution of India : Essay in Hindi )

 

प्रस्तावना

भारत में पर्यावरण जीवन की एक शैली है। पेड़ पौधों की रक्षा के लिए लोगों ने अपने जीवन दान किए हैं। लेकिन वक्त के साथ लोगों की प्राथमिकता बदलने लगी है और आधुनिक युग में उपभोक्तावाद से लोग प्रभावित हुए हैं।

जहां एक तरफ बढ़ती जनसंख्या गरीबी को बढ़ा रही है वहीं दूसरी तरफ अमीरों की लालच बढ़ते जा रहे हैं और वन्य जीवन को नष्ट किया जा रहा है।

जंगलों को समाप्त किया जा रहा है। पारंपरिक पौधों के स्थान पर आज सजावटी पौधों को स्थापित करके जैवविविधता को नष्ट किया जा रहा है।

भूमि, जल तथा वायु प्रदूषित हो रहे हैं। इन सब का परिणाम यह है कि परिस्थितिकी और संतुलन पैदा हो गया है। अब इस बात की आवश्यकता महसूस हो रही है कि इसके संरक्षण के संदर्भ में काम किया जाए।

भारतीय संविधान और पर्यावरण संरक्षण

भारतीय लोकतंत्र में न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका शासन के तीन स्तंभ माने जाते हैं। तीनों का कार्य क्षेत्र और महत्व अलग-अलग है।

विधायिका द्वारा जनता की अपेक्षा अनुसार विधान का निर्माण किया जाता है। कार्यपालिका विधान को लागू करवाती है। वही न्यायपालिका एक सजग प्रहरी के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन करती है।

हमारे देश में स्वतंत्रता के पश्चात न्यायपालिका को अधिक महत्व दिया गया। न्यायपालिका का निर्माण सरकार तथा जनता दोनों पदाधिकारी होने के कारण पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने तथा पर्यावरण मानव अधिकारों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

भारत का संविधान विश्व का ऐसा पहला संविधान है जिसमें पर्यावरण संरक्षण के लिए विशेष प्रावधान किया है। भारतीय संविधान में निहित समाजवादी विचारधारा का प्रमुख लक्ष्य सभी को जीवन को सुखद वस्त्र उपलब्ध करवाना है। यह केवल पर्यावरण प्रदूषण मुक्त से ही संभव है।

भारत के संविधान की प्रस्तावना का एक अन्य उद्देश्य व्यक्त की गरिमा को सुनिश्चित करना है। कोई व्यक्ति गरिमा के साथ नहीं जी सकता यदि उसे प्रदूषण मुक्त वातावरण ना मिल सके।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 एक (क) में प्रत्येक नागरिकों को बोलने तथा अभिव्यक्त करने का मूलभूत अधिकार प्राप्त है। लेकिन इसी अनुच्छेद के भाग 2 में वर्णित आधार पर इसे सीमित भी किया गया है।

भारत में जन तथा संचार माध्यमों का माध्यम से जन सामान्य के मध्य पर्यावरण संरक्षण संबंधी मुद्दों का बोध कराया जाता है।

विभिन्न शैक्षिक संगठन अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त मूल अधिकार के तहत पर्यावरण से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाते रहते हैं। जैसे एनवायरनमेंट सैटरडे ऑफ चंडीगढ़ एवं सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के प्रयास के तहत साइलेंट वैली प्रोजेक्ट को सोने के लिए बाध्य किया गया।

मिनरल वाटर एवं पेप्सी के विरुद्ध संघर्ष में कंपनियों को रासायनिक पदार्थ मुक्त जल अपनाने के लिए बात किया गया।इसी प्रकार पश्चिम बंगाल में असैनिक से पानी के प्रदूषण के प्रकरण में भी हस्तक्षेप किया गया था।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में जीवन के अधिकार तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। जिसकी विस्तृत व्याख्या न्यायपालिका द्वारा की गई। जिसमें स्वच्छ पर्यावरण को मूलभूत अधिकार में शामिल किया गया है।

भारतीय संविधान में 1976 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत में 42वां संविधान संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 48 का जोड़ा गया।

जिसमें देश में सरकार पर्यावरण की रक्षा तथा संवर्धन के लिए वनों तथा वन्य जीवन की सुरक्षा के लिए प्रयास करेगी, ऐसा प्रावधान है।

42 वें संविधान संशोधन द्वारा इसे समवर्ती सूची में शामिल कर दिया गया। अनुच्छेद 51 के मौलिक कर्तव्य में हर नागरिक का यह दायित्व है कि वह वन्य जीव, पर्यावरण अध्ययन तथा अन्य वन्यजीवों सहित प्राकृतिक वातावरण का संरक्षण करें तथा सुधार तथा जीवित प्राणियों के प्रति करुणा की भावना रखे।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47, 48 तथा 51 के अनुसार राज्य का कर्तव्य है कि वह पर्यावरण तथा नागरिक स्वास्थ्य की रक्षा करें तथा जनता के लिए प्रदूषण रहित जलवायु तथा पर्यावरण उपलब्ध कराएं।

अनुच्छेद 32 में उच्चतम न्यायालय को तथा सभी उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 226 के तहत अधिकार प्रदान किए गए हैं। जनहित याचिका पर्यावरण संरक्षण संबंधी मुद्दों को लागू करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

निष्कर्ष

जून 1972 में स्टॉकहोम में संपन्न मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन के अनुसार पर्यावरण अपने मनुष्य अपने पर्यावरण का निर्माता एवं शिल्पकार दोनों ही है। इससे उसे बहुत स्थिरता प्राप्त होती है।

पृथ्वी ग्रह पर मानव जाति की एक लंबी तथा पीड़ादायक उत्क्रमण यात्रा में एक ऐसी स्थिति आ गई है जब विज्ञान तथा तकनीक के तीव्र विकास द्वारा मनुष्य ने भूतपूर्व स्तर पर पर्यावरण की कायापलट करने की क्षमता हासिल कर ली है।

पर्यावरण और मानव निर्मित दोनों पक्ष उसकी सलामती तथा उसकी आधारभूत मानवाधिकार के लिए आवश्यक है।

लेखिका : अर्चना  यादव

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