Hindi Kavita | Hindi Poetry -गलतफहमी!
गलतफहमी!
( Galatfahmi )
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तमाशा ऐसा भी हमने सरे-बाज़ार देखा है ( Tamsssha Aisa Bhi Hamne Sare Bazar Dekha Hai ) तमाशा ऐसा भी हमने सरे-बाज़ार देखा है।। दिखावे के सभी रिश्ते जताते प्यार देखा है।। तभी तक पूछते जग में है पैसा गांठ में जब तक। हुई जब जेब खाली तो अलग व्यवहार देखा है।। …
सूनी होली ( Suni holi ) छेड़छाड़ ना कोई शरारत ना कोई हॅंसी ठिठोली ना कोई रंगों की महफ़िल ना कोई घूँट ना गोली सारा जग वैसा ही है पर लगती एक कमी है सोच रहा बैठा मेरा मन कैसी होली हो ली भीड़ भाड़ औ’ शोरो गुल सब सन्नाटा बन बिखरा जितना…
छांव की तलाश ( Chhav ki talaash ) चिलचिलाती धूप में, पंछी पानी को तरसे। गर्मी से व्याकुल फिरे, छांव की तलाश में। सूख गये नदी नाले, छाया सब ढूंढ रहे। गर्म तवे सी धरती, तप रही आग में। झुलस रहे हैं सारे, जलती हुई धूप में। ठंडी छांव मिले कहीं, चल…
जनता की जागरूकता आई काम ( Janta ki Jagrookta Aaee Kaam ) जाग गए हैं जाग रहे हैं वोटों को लेकर सजग हुए हैं मतदान बाद मशीन की निगरानी भी कर रहे हैं बंगाल असम चुनावों में नया ट्रेंड देखने को मिल रहे हैं। करीमगंज की घटना साबित करती है, जनता अब अपने वोटों…
फागुन ( Phagun ) फागुन की दिन थोड़े रह गए, मन में उड़े उमंग। कामकाज में मन नहीं लागे, चढ़ा श्याम का रंग। रंग बसंती ढंग बसंती, संग बसंती लागे। ढुलमुल ढुलमुल चाल चले,तोरा अंग बसंती लागे। नयन से नैन मिला लो हमसे, बिना पलक झपकाए । जिसका पहले पलक झपक जाए,…
सबको ही बहलाती कुर्सी सबको ही बहलाती कुर्सी अपना रंग दिखाती कुर्सी दौड़ रहे हैं मंदिर-मस्जिद कसरत खूब कराती कुर्सी ख्वाबों में आ-आ ललचाऐ आपस में लड़वाती कुर्सी पैसे से है हासिल डिग्री कितनों को अब भाती कुर्सी ऊँचे- नीचे दम-खम भर कर मन-मन आग लगाती कुर्सी :सड़को से संसद तक वादे खूब उन्हें…