ग़म से कभी मैं यूं ही, परेशान नहीं होता | Gam shayari
ग़म से कभी मैं यूं ही, परेशान नहीं होता
( Gam se kabhi main yun hi, pareshan nahi hota )
दिल जो कि ख़ुशी से मेरा, वीरान नहीं होता,
ग़म से कभी मैं यूं ही, परेशान नहीं होता
इबादत अगर जो करते, तुम सब ही ए लोगों,
नाराज़ फिर सभी से वो, भगवान नहीं होता ।
कि लोग बस्ती में भूखे, मर जाते यहां यारों,
खाने को गर रोटी औ” सामान नहीं होता ।
बेअदबी यदि मेरे साथ होती ना उल्फ़त में,
कि दिल में नफ़रत का उठा, तूफान नहीं होता ।
वरना मिटा देता मैं वो, आज सभी दुश्मन ही,
यदि रोकने का मिला अब, फ़रमान नहीं होता ।
इक़रार-,ए-मुहब्बत मत करना, किसी से कभी,
उल्फ़त का सफ़र इतना तो, आसान नहीं होता ।
सब लोग रहें मिलकर आज़म, मुहब्बत से यारों,
इंसान का रकीब कभी भी इंसान नहीं होता ।
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शायर: आज़म नैय्यर
( सहारनपुर )