गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी के 28 वें महाप्रयाण दिवस
ओम् गुरुदेवाय नमः !
आज से 27 वर्ष पूर्व तेरापंथ धर्म संघ के नवम अधिशास्ता , अणुव्रत को जन – जन तक पहुँचाने वाले आचार्य श्री तुलसी
सदा – सदा के लिये इस धरा से विदा हो गये । गुरुदेव तुलसी के चरणों में मेरा भावों से शत – शत वन्दन ।
गुरू तुलसी का स्मरण कर ले ।
नर जीवन को पाकर हमने कैसा सद्व्यवहार किया ?
सदाचार का अमृत प्याला हमने कितनी बार पिया ।
विरले होते गुरुदेव श्री तुलसी जैसे जो धर्मशूर कहलाते ।
भाग्य योग से यह सुन्दरतम नर तन हीरा पाया हैं ।
भौतिकता की चकाचौंध में मन रम भटक जाता हैं ।
त्यागी – तपस्वी जैसे सन्त संयम में रम जाते हैं ।
दुनिया की रंगीन बहारों ने सबको भरमाया हैं ।
प्रभु का नाम जबां पर कितनी बार सबने लिया हैं ।
धर्म की और होकर उन्मुक्त जीवन सफल बन जाये ।
कितनी ऊमर बित गई है दुनियां के इस धँधे में ।
धर्म कर्म को भूल फँसे और – और के फंदे में ।
राग – द्वेष की प्रबल भावना को धर्म से उन्मुक्त करना है ।
समय बितता जा रहा है क्या कुछ सुविचार किया ।
मिट्टी की यह काया हमारी मिट्टी में मिल जायेगी ।
पल भर का भी है न भरोसा धर्म का घट भर ले ।
आउखे की घड़ियाँ कब अचानक आ जाये ।
निर्मल कर अपनी आत्मा को ज्योतिर्मय बनाये ।
धर्म कर इस जीवन का हम बेड़ा पार कराये ।
गुरू तुलसी का स्मरण कर ले ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)