गांधीजी के जीवन सिद्धांत
गांधीजी के जीवन सिद्धांत
२ अक्टूबर १८६९ को पोरबंदर में जिसने जन्म लिया,
पुतली बाई मां पिता करमचंद ने मोहनदास नामकरण किया,
पीर पराई देख जिसकी आंखें और हृदय भर आता था,
करूणा दया देख टैगोर ने जिन्हें महात्मा नाम दिया।
माता के गुरु श्रीमद राजचंद्र जैन धर्म के अनुयायी थे,
गांधीजी के विदेश जाने पर मां के मन में चिंता समाई थी,
गुरू चरणों में जैन धर्म के सिद्धांतों को अंगीकार किया,
मद्य मांस का त्याग किया ब्रम्हचर्य से रहने की शपथ दिलाई थी !
सदाचार करूणा और दया का बीजारोपण यहां हुआ,
महावीर के मूल सिद्धांत को गांधी जी ने ग्रहण किया,
सत्य अहिंसा को अन्याय के विरुद्ध शस्त्र बना,
विदेशों में भी गांधीजी ने सत्याग्रह का डंका बजा दिया।
गांधीजी की अहिंसक आंदोलन से देश को नई दिशा मिली,
असहयोग जैसे आंदोलनों से अंग्रेजी शासन की नींव हिली,
लाठी डंडे गोलियां चला चला जब हुकूमत हार गई,
तब जाकर भारत माता को बेड़ियों से आज़ादी मिली !!
काया जर्जर होती गई पर आत्मशक्ति उनकी बढ़ती रही,
गोडसे की वैमनस्यता गोली बन उनमें समा गई,
हे राम! के उद्घोष के साथ गांधी जी ने प्राण त्याग दिए,
एक बार पुनः नफरत से प्रेम सद्भाव की भावना जीत गई !!
स्वतंत्र भारत में सबको स्वमान से जीने का अधिकार मिले,
कर्त्तव्य निभाएं भारत की प्रगति को एक नया आधार मिले,
द्वेष घृणा न हो आपस में मिल जुलकर सब रहा करें,
गांधीजी के सपनों के भारत को नया आकार मिले!!
सभी जीव स्वतंत्र रहें पर स्वच्छंद ना कोई हुआ करे,
संस्कारों और संस्कृति की जड़ों से हर कोई जुड़ा रहे,
गांधीजी के आदर्शों को भारतवासियों को अपनाना है,
आज़ादी के अमृतकाल में भारत विश्व विजयी बना रहे!!
विरेन्द्र जैन
( नागपुर )