ग़र्ज़ के रिश्ते

ग़र्ज़ के रिश्ते | Garz ke Rishte

ग़र्ज़ के रिश्ते

( Garz ke Rishte )

 

कुछ एक रिश्ते ऐसे भी होते हैं,
जो बिना ग़र्ज़ के बने होते हैं,
उनकी शानो-शौकत न देखी जाती,
जिनको हमारे दिल ने चुने होते हैं,

ग़र्ज़ के रिश्तों में चाहत के निशाँ न मिले,
उनमें तो महज़ ग़र्ज़ के धूल भरे होते हैं,

ग़र्ज़ की भी कई तरह किस्में होती है,
कहीं दिल तो कहीं दिमाग़ की ज़रूरतें होती हैं,
नफ़रत की बदबू आने लगती है उनसे,
जिस रिश्ते में ग़र्ज़ की मिलावट करे होते हैं,

पाप की भरी गागर छलकती ही एक दिन,
सच की रौशनी हम पे पड़ती है एक दिन,
कुछ अरसा ही वो झूठ से ढके होते हैं,
फिर सच से मुनव्वर रिश्ते सारे होते हैं,

ग़र्ज की न दोस्ती अच्छी न दुश्मनी भली,
वो सब रिश्तों को ठोकरों पे लेकर चली,
बेग़र्ज़ जो रिश्ते निभाए जाते हैं आश,
उनमें ही ज़िन्दगी के सारे रंग भरे होते हैं!

Aash Hamd

आश हम्द

पटना ( बिहार )

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