गया जो हाथ खाली था सिकंदर जानता होगा
गया जो हाथ खाली था सिकंदर जानता होगा

गया जो हाथ खाली था सिकंदर जानता होगा

( Gaya Jo Hath Khali Tha Sikandar Janta Hoga )

 

यहीं सब छौङ  के जाते बशर हर जानता होगा।
गया जो हाथ खाली था सिकंदर जानता होगा।।

 

जुबां ही जब नहीं खोली समझते बात फिर कैसे।
छुपे क्या राज़ सीने में वो खंजर जानता होगा।।

 

अकेले  चल  रहे  थे हम  सही  राहें  पकड़  अपनी।
किया गुमराह क्यूं हमको ये रहबर जानता होगा।।

 

बिताए  खौफ  में  कितने यहां दिन रात थे हमने।
मुकम्मल दास्तां को वो सितमगर जानता होगा।।

 

नहीं  फरियाद  की  जिसने छुपाए दर्द सीने में।
बचाया  मान  था कैसे कटा सर जानता होगा।।

 

“कुमार”आती नहीं है शायरी फौरन ज़माने में ।
लगे है साल कितने ही कलेंडर जानता होगा।।

?

 

कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)

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