गए वो दिन | Gaye Woh Din
गए वो दिन
( Gaye Woh Din)
अजब इस दौर में हमने शरीफों का चलन देखा I
डुबो के हाथ खूं में फिर बदलते पैरहन देखा II
हुई बर्बाद कश्ती जो ,वजह है ना-ख़ुदा खुद ही I
उजड़ता बाग़बाँ के सामने ही ये चमन देखा II
किया था नाज़ जब कहते, मिरी हर शै उन्हें प्यारी I
मुख़ालिफ़ वक़्त में उनको बदलते दफ़अतन देखा II
हमारी सादगी पे थे फ़िदा जो रू-ब-रू मेरे I
घुमाते पीठ उनको ही हसद से सोख़्तन देखा II
ख़बासत खातमा की बात करते जो तकल्लुम में I
सड़न में लोटता उनको सरापा ख़ारिजन देखा II
रफ़ाक़त या रकाबत ये, बड़ी उलझन हुई थी जब I
मिरे बर-‘अक्स उनका दुश्मनों से हम-सुख़न देखा II
गए वो दिन कभी जब बात में कुछ बात होती थी I
अभी तो क़ौल खवाहिश के घरों में मुर्तहन देखा II
सुमन सिंह ‘याशी’
वास्को डा गामा, ( गोवा )
शब्द
पैरहन= पोशाक, ड्रेस
ना-ख़ुदा= नाविक, मल्लाह
मुख़ालिफ़= विरोधी, विपक्ष, विपरीत, प्रतिकूल
दफ़अतन= फ़ौरन . तुरंत
हसद =ईर्ष्या, द्वेष,
सोख़्तन = जलता हुआ
ख़बासत= गंदगी, भ्रष्टाचार
तकल्लुम– वार्तालाप, भाषण
ख़ारिजन = वास्तव में , हकीकत में,अस्ल में
रफ़ाक़त या रकाबत= दोस्ती या दुश्मनी
बर-‘अक्स= विपरीत, , विरुद्ध, खिलाफ
हम-सुख़न= एक जैसी बात करने वाला
क़ौल = वादा
मुर्तहन= बंधक , बंदी