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नमी
( Nami )
क्यों आँखों में अक्सर नमी रह गई
जो नहीं मिला उसकी कमी रह गई।
यूँ भीड़ में चलते रहे हज़ारों बस
अपनों को ढूढ़ती ये नज़र रह गई।
समंदर भर एहसास गुजरते देखे
मगर कायम इक तिशनगी रह गई।
सुधारा बहुत अपनी कमियों को
फिर सुना वो बात नहीं रह गई।
बहारों ने कितने ही फूल खिलाये
पतझड़ में पत्तों की कमी रह गई।
समझ न पाए फितरत रिश्तों की
इसलिए दरमियाँ कुछ दूरी रह गई।
फ़िक्र कहाँ अपनी ‘आस’ की करे
ख़्वाहिश कितनों की अधूरी रह गई।
शैली भागवत ‘आस’
शिक्षाविद, कवयित्री एवं लेखिका
( इंदौर )
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