भूले से चेहरे | Geet bhoole se chehre
भूले से चेहरे
( Bhoole se chehre )
भूले से चेहरे कितने ही, आँखों में घिर आए हैं !
अपना भी चेहरा है उनमें, या हम फिर भरमाए हैं !!
प्रातः कीआशा बन आये, हैं जग में कब से उजियारे
लेकिन अबभी अन्धियारों से,भरे हुए घरके गलियारे
मैं अपने आँगन में बैठा , सूरज को तो देख रहा पर
एक किरणभी पहुंचसकी ना,अबतक मेरे घरके द्वारे
मनहीमन बैठा हूं घुटता,किससेअब मैं क्याकह पाऊं
कल तक जो मेरे अपने थे, सारे आज पराए हैं !!
दोपल जोभी साथ रहाहै,अपना मानलिया उसको ही
जोकुछभीअपनासंचित था,वह सारा उसको दे डाला
जोबदले में मिल पाए वे,भावों के कुछ फूल जतन से
बान्ध लिये अपनी गठरी में,कभी बना डालूंगा माला
आज गूंथने बैठा हूं जब, गठरी खोल देखता हूं सब
बने हुए निर्माल्य रखे हैं, गंन्ध हीन मुरझाए हैं !!
वैसे तो हर जीवन होता, अपनी अपनी एक कहानी
डुबा गया पर मेरा जीवन, मेरी ही आँखों का पानी
टीस रहाहैआज ह्रदय फिर,कोई तरस खारहा मुझपर
किन्तु नहीं स्नेह दे सकी,मुझे किसी की दृष्टि अजानी
समझ नहींआता मुझको मैं,कैसे अपनाआप छिपालूॅं
लगता है सब की नजरों में, जैसे शूल उभर आए हैं !!
मन में अपनाजो कुछभी है,वह अब आगे कह न पाए
जो कुछभी महसूस कियाहै,वह सारा चुपरह सह जाए
कहींदूरइस क्रूर भॅंवर के,व्यर्थ वितल में गुमह़ोकर वह
इसकी धाराओं में आगे , शायद कुछ पल में बह जाए
पर तुम पार उतरकर आगे,बढ़जाना मत मुझे खोजना
सांझ उतर आने वाली है, अन्धियारे घिर आए हैं !!
कवि : मनोहर चौबे “आकाश”
19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001
( मध्य प्रदेश )