चोर चोर मौसेरे भाई | Geet chor chor mausere bhai
चोर चोर मौसेरे भाई
( Chor chor mausere bhai )
सड़क पुल नदिया निगले घोटालों की बाढ़ आई।
चारा तक छोड़ा नहीं नेता वही जो खाए मलाई।
महकमे में भ्रष्टाचार फैला लगे जैसे सुरसा आई।
जनता की कमर तोड़ दी ऊपर से बढ़ती महंगाई।
चोर चोर मौसेरे भाई,चोर चोर मौसेरे भाई
सांठगांठ से काम चलता जाने कितना पेट भरता।
जो जितने ऊंचे ओहदे पे उतना ही माल धरता।
लाज शर्म का काम नहीं कलाकारी तन मन भाई।
जनता चाहे जाए भाड़ में पाये शोहरत रसमलाई।
चोर चोर मौसेरे भाई,चोर चोर मौसेरे भाई
अर्थतंत्र प्रजातंत्र न्याय प्रणाली बिगड़ा आचार।
रिश्वतखोरी पांव पसारे कालाबाजारी भ्रष्टाचार।
किसको कितना समझाएं बात समझ ना आई।
भांग कुएं में पड़ गई सारी अब देते सभी दुहाई।
चोर चोर मौसेरे भाई,चोर चोर मौसेरे भाई
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )