जागरण करता रहा | Geet Jagran Karta Raha
जागरण करता रहा
( Jagran Karta Raha )
तेरे मन को भाये जो , वह आचरण करता रहा।
नींद के पंछी उड़ा कर , मैं जागरण करता रहा।।
दीप स्नेहिल बार कर ही ,आयु भर कंटक सहेजे।
द्वार पर तेरे हमेशा, अर्चना के फूल भेजे ।
मैं तो शंकर सा ही बस ,विष का वरण करता रहा ।।
नींद के पंछी—
आ गया आकाश गंगा ,के मैं अचानक पास कब ।
उड़ गया उर के घटों से ,मेरे इधर उल्हास सब ।
किन्तु तेरे मार्ग से मैं ,दुख का हरण करता रहा ।।
नींद के पंछी—
लिख दिया है नाम तेरा ,गीत की हर पुस्तिका पर ।
कुछ नहीं तुमने लिखा अब ,तक मिलन की याचिका पर ।
मैं ही सुगंधित गीत से ,वातावरण करता रहा ।।
नींद के पंछी—-
बुझ रहे थे जो निरंतर ,अब तक विरह अवसाद से ।
जल उठे सारे दिये वो , तेरे मधुर संवाद से ।
प्रेम की अनुभूतियों में , निशिदन रमण करता रहा ।।
नींद के पंछी—
क्या अजब मेरा तुम्हारा ,यह प्रेम का संबंध है ।
लगता जन्मों से कोई ,यह आत्मिक अनुबंध है ।
तेरे सिंचित बागों में ,ही मैं भ्रमण करता रहा।।
नींद के पंछी—-
देख लो कैसा सफल अब ,जीवन हुआ वरदान सा ।
चमचमाता हूँ जगत में , सागर सदा दिनमान सा ।
सारा पथ ज्योतित मेरा ,अन्त:करण करता रहा।।
नींद के पंछी—
तेरे मन को—
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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