हिंदी का गुणगान करें
हिंदी का गुणगान करें
पंक्ति-नीर क्षीर कर ग्रहे सार को, शुचि हिंदी का गुणगान करें।
भारत माता के भाल बिंदी,अब एक नवीन मुस्कान भरे।
नीर क्षीर कर ग्रहे सार को, शुचि हिंदी का गुणगान करें।
ताल सुरों का संगम इसमें, बहे रस छंद की धारा है।
सात सुरों से शोभती हिंदी, संगीत इसने निखारा है।
आओ हम सब मिलकर के अब, सर्वत्र इसी का बखान करें।
नीर क्षीर कर ग्रहे सार को, शुचि हिंदी का गुणगान करें।
अक्षर अक्षर ओम बना है, गीता ज्ञान उपहार हिंदी।
जन-मानस की प्रीत यही है,, मातृप्रेम दुलार है हिंदी।
सबसे पहली भाषा प्यारी,एक नया अब प्रतिमान गढ़े।
नीर क्षीर कर ग्रहे सार को, शुचि हिंदी का गुणगान करें।
बालक वृद्ध सभी हैं बोलें,अपने मन विचार को खोलें।
सहज सलोनी भाषा प्यारी, मिश्री की है डलियाॅ॑ घोले।
दोहा गीत छंद का नाता, तुलसी कबीर रसपान करें।
नीर क्षीर कर ग्रहे सार को, शुचि हिंदी का गुणगान करें।
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कवयित्री: दीपिका दीप रुखमांगद
जिला बैतूल
( मध्यप्रदेश )
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