Geet Kahin Pe Nigahen Kahin Pe Nishana
Geet Kahin Pe Nigahen Kahin Pe Nishana

कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

( Kahin Pe Nigahen Kahin Pe Nishana ) 

 

 

देखो कभी ये सितम ना ढहाना मेरा दिल हो गया दीवाना।
कहां नजरें जरा बता दो कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना।
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

इस दिल में तस्वीर तुम्हारी महकी बगिया सुंदर फुलवारी।
लगती कितनी प्यारी प्यारी समझो जरा तुम मेरी बेकरारी।
पास आकर दूर ना जाना तेरी सांसे मेरे दिल का तराना।
हंस-हंसकर यूं मुस्कुराना लबों पे आता कोई गीत सुहाना।
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

आओ बैठो तुम महफिल में ख्वाब सजाए हैं इस दिल में।
चैन मिल मिल जाता है हमको दिलवाले आए हैं दिल में।
बहता झरना प्रेम भरा सागर नयनो से तुम नेह बरसाना।
प्रेम निगाहें मनमोहक सी इन आंखों में उतर तुम जाना।
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

मन मंदिर में पुष्प खिले हैं बिछड़े दो दिलदार मिले हैं।
दिल की धड़कन लब हिले है प्यार भरे ये सिलसिले है।
चाहत की मुस्कान आओ वादा करके मुकर ना जाना।
गुलशन सी महकती फिजाएं बहारें बनकर तुम छा जाना।
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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