वर्तमान में जी नहीं पाया | Geet Vartman mein
वर्तमान में जी नहीं पाया
( Vartman mein jee nahin paya )
भविष्य के भंवर में भटका, वर्तमान में जी नहीं पाया।
सुख की ठौर रहा ढूंढता, पल भर का भी चैन ना आया।
कालचक्र व्यूह जाल में, घटनाक्रम क्या-क्या समाया।
जो सच का आभास कराएं, नैनो ने वही भरम बताया।
वर्तमान में जी नहीं पाया
स्वर्ण शिखर की ओर चला, सपनों का महल बनाने को।
अभिलाषाएं अगणित उठती, धरातल पे मूर्त लाने को।
ध्यान मग्न सा कड़ी तपस्या, जाने कितना वक्त खपाया।
विलक्षण कल्पनाओं की दुनिया, राज समझ ना आया।
वर्तमान में जी नहीं पाया
कितना छूटा क्या-क्या टूटा, सपनों की बुनियादों में।
क्या पाया है क्या-क्या खोया, खो जाता उन यादों में।
मेरी उछल कूद में रहता, सिर पर मात पिता का साया।
जिंदगी की उलझनों में वह, शीतल छांव नहीं ले पाया।
वर्तमान में जी नहीं पाया
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )
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