यह आग अभी | Geet Yah Aag Abhi
यह आग अभी
( Yah Aag Abhi )
यह आग अभी तक जलती है ,मेरे आलिंगन में।
स्वर मिला सका न कभी कोई ,श्वासों के क्रंदन में ।।
जब छुई किसी ने अनायास ,भावुक मन की रेखा ।
दृग-मधुपों ने खुलता स्वप्नों, का शीशमहल देखा।
खिल उठे पुष्प कब पता नहीं ,सारे ही मधुवन में।।
यह आग अभी—-
दीपक कोई कब बन पाया ,साथी संध्याओं का ।
जिसने जो चाहा लूट लिया ,अपनी इच्छाओं का ।
लूटे भुजंग रहती सुगंध ,फिर भी है चंदन में ।।
यह आग अभी —-
खुल गये द्वार बाजे सितार , हर दिश था उजियारा ।
जब अधरों ने उन अधरों का ,आमंत्रण स्वीकारा ।
कब सोच सका क्या जादू था ,उसके सम्मोहन में ।।
यह आग अभी—–
जब सुस्मृतियों ने खोली है ,भूली बिसरी पुस्तक ।
कुछ प्रश्न अधूरे से अक्सर ,मिलते हैं नतमस्तक ।
कितना विषाद कितनी पीड़ा ,है मेरे चिंतन में ।।
यह आग अभी——
टूटे संकल्प वचन टूटे ,तोड़ी सौगंध गई ।
लेकिन सरिता विश्वासों की ,बहती निर्बंध गई ।
मैं समझ सका कुछ भेद नहीं ,पीतल में कुंदन में ।।
यह आग अभी—-
इस पथ में छाया पग-पग पर ,ही घना कुहासा है ।
हर त्याग तपस्या का महात्म ,भी खेल तमाशा है ।
बस महाशून्य है बिन तेरे ,अब मेरे जीवन में ।।
यह आग अभी—–
इस जग का हर आकर्षण ,साग़र मात्र छलावा है ।
संबंधों के हर दर्पण पर ,बस सजा दिखावा है ।
कितने दिन किससे साथ निभे ,अब ऐसे बंधन में ।।
यह आग अभी ——
स्वर मिला सका—-
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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