घर की इज्जत, बनी खिलौना | Ghar ki Izzat
घर की इज्जत, बनी खिलौना
( Ghar ki izzat, bani khilauna )
अब कहां कोई खेलता है, खिलौनों से साहब??
अब तो नारी की अस्मिता से खेला जाता है।
यत्र पूज्यंते नार्याः, रमंते तत्र देवता,
बस श्लोकों में ही देखा जाता है।
तार तार होती हैं घर की इज्जत,
बड़ी शिद्दत से खेल सियासत का खेला जाता है।
मीडिया, अख़बार, सरकार भी मौन है।
नारी का आंचल खींचता, दुःशासन यह कौन है??
रेप होते है, हर रोज लुटती है द्रोपदी।
द्रोपदी के लाज रखने वाला, कृष्ण बताओ कोन है,,
मौन है सब मौन है, मौन है क्यू मौन है।
स्त्री क्या बन गई खिलौना, खेलता हर कोई यहां,
बात बात पर बस मां बहन की गाली देते सब यहां।
देखो देखो, दुराचार की भी हद पार की,
इंसानियत को कुछ दरिंदो ने, कैसे तार तार की।
प्रतापगढ़, ( उत्तरप्रदेश )