Ghazal | हर कोई मगर दिल से अशराफ़ नहीं होता
हर कोई मगर दिल से अशराफ़ नहीं होता
( Har koi magar dil se ashraf nahi hota )
हर कोई मगर दिल से अशराफ़ नहीं होता
ए यारों कभी सच का इंसाफ नहीं होता
तू बात जरा करना ए यार संभलके ही
देखो हर किसी का ही दिल साफ़ नहीं होता
तो जीत नहीं पाते हम जंग अदूं से ही
ए यारों बग़ावत का इतराफ़ नहीं होता
तोड़ो न मुहब्बत में यूं दिल किसी भी यारों
ऐसे वो गुनाहों से ही माफ़ नहीं होता
मैं तोड़ देता रिश्ता वो आज उसी से ही
उसका अगर जो ये कोहे क़ाफ़ नहीं होता
तो रात हंसी साये में आज़म नहीं कटती फ़िर
उसकी अगर जुल्फों का मूबाफ़ नहीं होता
शायर: आज़म नैय्यर
(सहारनपुर )