कल तक गिना रहे थे, जफाओं की वो मिसाल | Ghazal
कल तक गिना रहे थे,जफाओं की वो मिसाल
( Kal tak gina rahe the jafaon ki wo misaal )
कल तक गिना रहे थे जफाओं की वो मिसाल !
हैं सामने खुद उनकी वफाओं पे ही सवाल !!
हर शख्स उनके दौर का है उनको जानता
कायम हमेशा से रहे हैं उनके ये अमाल !!
हर लोमड़ी कहती है ये सब कोशिशों के बाद
अंगूर खट्टे ही लटकते वहाॅं ऊँची डाल !!
संगीत संध्या का हर इक गायक है अब नाराज
सुर से अलग लगती रही साजिंदे की हर ताल !!
हारा या जीता कौन वो परवाह क्यों करें
फड़ में जो बैठे काटने को सिर्फ अपनी नाल !!
बनवा चुके हैं मुल्क के भीतर बहुत से मुल्क
करते रहे जो मुल्क की मुद्दत से देखभाल !!
देखे है दुनिया जीत कर घर लौट रहे वीर
तलवार ना चलवाई ना ही की प्रयोग ढाल !!
निश्चित था उनका डूबना तूफान के चलते
उतरे न थे क्यों उनके सफीनों पे चढ़े पाल !!
समझा न सिफत ऑंच की वह रसोइये तो फिर
बुझ गया चूल्हा जब उठा बरतंन में था उबाल !!
आया नतीजा देख अब हॅंसने लगे है लोग
कहते हैं हर धृतराष्ट्र का होता है यही हाल !!
हाथी, वजीर, ऊॅंट तो क्या खुद ही बादशाह
पाता नहीं चल ढाई घरों की उड़ाऊ चाल !!
उखड़ा गिरा बरगद सड़ा घटिया सियासत का
देखें कि कब तक बज सकेगा और फूटा गाल !!
“आकाश” तो पहले ही यह सच जान चुका था
है मात शह के साथ ही, जब वक्त की हो चाल !!
कवि : मनोहर चौबे “आकाश”
19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001
( मध्य प्रदेश )
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